जीवन की अंधेर गलियों से
उजालों की ओर चल पड़े।
जिन्हें चलना था साथ मेरे
वो साथ मेरे चल पड़े
रुकने वाले वहीं रहे
वो हाथ मलते रह गए।
जो जड़ हो गया वह आदमी कैसा।
जिसमे चाहत न हो विकास की
तरक्की की वह राहत कैसा।
बीन पंख के खग जैसा।
बीना पूंछ के मृग जैसा।
खींचने वाले लाख़ मिले थे।
तोड़ने वाले साथ हीं खड़े थे
पर हम अपनी दिल की सुनते गए
काटें कलियां जो भी मिले
हम उनके संग चलते गए।
हम नही केवल सुख के अनुगामी
हम दुख की भी सामना करतें हैं।
राह भरी कांटों पर खुद चलकर
सभी के सुख की कामना करतें हैं ।
हम हैं भारत भारती
हम सभी का सम्मान करतें हैं ।
क्या हो कोई अमीर गरीब
चाहे किसी धर्म मज़हब का
हम सबका इस्तकबाल करतें हैं।
हम सब भारतवासी...
अपने देश को बहुत प्यार करतें हैं।
हम सब भारतवासी ..
अपने देश को बहुत चाहतें हैं..
हम सब भारतवासी को अपने देश को
बहुत प्यार करते हैं..