ज़हर घोलते हैं समाज में,
मासूमों का खून पीते हैं।
आतंक के बीज बोते हैं,
शांति को चीर-फाड़ते हैं।
निरदोषों को निशाना बनाते,
मंदिर मस्जिद को ध्वस्त करते।
मानवता की हत्या करते,
फिर भी मुस्कुराते हैं।
काला साया फैलाते,
डर का माहौल बनाते।
देश की एकता को तोड़ते,
नफरत की आग लगाते।