तुम्हारी बाते और खन-खनाती हँसी।
आज भी दे जाती सुकून और खुशी।।
कभी बातों का सिलसिला खूब रहा।
जिम्मेदारियो से थम सी गई हँसी।।
कभी-कभी जब बात होती 'उपदेश'।
सुबकने की ध्वनि मजबूर खामोशी।।
बेशक दूरियां बढ़ाई कुछ सोचकर।
अन्दर में तड़पती होगी शायद हँसी।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद