सबसे भयावह क्या है?
अंधेरी रात, जंगल का सन्नाटा,
या भूकंप और तूफानों का कहर,
नहीं!
सबसे भयावह होती है वो परछाईं,
जो हर लड़की के साथ चलती है,
रात को अकेले बाहर निकलने पर,
बाजार में किसी की जलती नज़रों में,
या भीड़ में एक अनचाहा स्पर्श सहने पर।
वो डर, जो हर माँ अपनी बेटी की
आँखों में पढ़ लेती है,
और सीख देती है—
“मत मुस्कुराना ज्यादा, मत दिखाना हौसला,
मत पहनना वो जो तुम्हें पसंद हो,
मत रहना अकेली, मत रहना स्वतंत्र…”
सबसे गहरी खाई कौन सी है?
हिमालय की घाटियाँ, समंदर की गहराइयाँ,
या राजनीति के छल-छद्म खेल,
नहीं!
सबसे गहरी होती है वो खाई,
जिसमें एक स्त्री के सपने गिरते हैं,
जब उसे कहा जाता है—
“अब तुम्हारी दुनिया सिर्फ तुम्हारा घर है,
अब तुम्हारी पहचान सिर्फ तुम्हारा पति है,
अब तुम्हारी इच्छाएँ दूसरों की सेवा में पूरी होंगी।”
सबसे जलता हुआ क्या है?
सूरज की धधकती किरणें,
दावानल में लपटें लेता जंगल,
या युद्ध में जलते शहर,
नहीं!
सबसे जलती हुई होती हैं वो आँखें,
जो अपने अधिकारों के लिए रोई थीं,
जो बार-बार सूख गई थीं,
लेकिन फिर भी आँसुओं को
अपना हथियार नहीं बना सकीं।
जो सपनों की चिता जलते देखती रहीं,
पर विरोध में एक शब्द भी न कह सकीं।
सबसे झूठा क्या है?
नेताओं के वादे, धर्म की परिभाषाएँ,
या बाजार की चमक-दमक,
नहीं!
सबसे झूठा होता है वो प्रेम,
जो सिर्फ स्त्री के समर्पण से सींचा जाता है,
जहाँ त्याग को ही सच्चे प्रेम की कसौटी माना जाता है,
जहाँ प्रेम करने के लिए
उसे पहले खुद को मिटाना पड़ता है,
और फिर भी वह पूरी नहीं मानी जाती।
सबसे कड़वा क्या है?
नीम का स्वाद, पराजय की पीड़ा,
या समय का दिया धोखा,
नहीं!
सबसे कड़वा होता है वो सत्य,
जिसे हर लड़की बचपन में सुनती है—
“तुम पराया धन हो,”
“तुम्हें दूसरे घर जाना है,”
“तुम्हारा असली घर ससुराल है,”
और वो जीवन भर अपने अस्तित्व की
धरती तलाशती रह जाती है।
सबसे स्थायी क्या है?
पहाड़ों की चट्टानें, सदीयों पुरानी सभ्यताएँ,
या किसी महान योद्धा की विरासत,
नहीं!
सबसे स्थायी होता है वो संघर्ष,
जो हर स्त्री अपने अंदर लेकर जन्म लेती है,
जो उसे हर सांस के साथ जीना होता है,
जो उसे हर दिन एक नई लड़ाई में झोंक देता है,
जहाँ उसे अपने हक़ के लिए भी
दूसरों की अनुमति माँगनी पड़ती है।
लेकिन सबसे अजेय क्या है?
स्त्री का हौसला, उसकी जिद,
उसका खुद को हर बंधन से मुक्त करने का प्रयास।
जो घूंघट की जंजीरों को तोड़कर
अपने अस्तित्व को पहचानने की यात्रा पर निकलती है।
जो अपने सपनों को पुनः जीवित करती है,
जो हर प्रताड़ना के बाद भी खड़ी होती है,
और कहती है—
“अब और नहीं,
अब मैं अपने लिए जिऊँगी,
अब मैं अपनी पहचान खुद बनाऊँगी।”