एक रोज आया चांद मेरी खिड़की में
कहने लगा प्रेम से बाते मेरी खिड़की में
मैं तो जागता हूं रात रात ढूंढने को चांदनी
तुम क्या ढूंढते हो रात रात भर किताबों में
एक रोज आया चांद मेरी खिड़की में.......1
मैने खोया है उसे इन्ही काली रातों में
मैने ढूंढा है उसे इन्ही सभी गलियों में
लेकर मशाल उजाले की ढूंढता हूं उसे
तुम भी ढूंढते हो जला दिया किसे इन किताबों में
एक रोज आया चांद मेरी खिड़की में.....2
ख्वाब खोए हैं हमने जाने कहां किन गलियों में
ख्वाब बुने हैं मेरे लिए न जाने कितनी आंखो ने
अब तो बस सहारा और किनारा है यही मेरा
मैं ढूंढ लूं जीवन का सारा फल इन किताबों में
एक रोज आया चांद मेरी खिड़की में.......3
जाने कितना पसीना खोया है हम संग हमने
कितनी भूंखो को मार खाया है हमने
लड़खड़ाते कदमों खुशी से खिलते चेहरे को
ढूंढ रहा हूं उनके जीने का सहारा इन किताबों में
एक रोज आया चांद मेरी खिड़की में....4