गए थे छुट्टियाँ मनाने, कुछ सुकून के पल चुराने,
क्या पता था लौटेंगे ताबूत में, ज़िंदगी गंवाने।
किसी ने हँसते हुए थामा था नन्हा सा हाथ,
अब वही हाथ ढूंढता है तस्वीरों में उसका साथ।
किसी ने चखी थी कश्मीरी चाय की मिठास,
अब वही कप है, पर ना कोई प्यास।
किसी ने कहा – “बीवी का बर्थडे है आज”,
अब आँसुओं से लिखा गया है उसका राज।
कोई गया था नई शादी की ख़ुशियाँ सजाने,
अब तिरंगे ने आके लिया उसे गले लगाने।
अब तिरंगे में लिपटी वो आख़िरी दुआ थी,
जो हर दिल में अब तक सुलगती आग सी जुड़ी थी।
जिस हाथ की मेहँदी का रंग अब तक था बाकी,
अब वही हाथ चूड़ियाँ तोड़ें, आँखों में आंसू बसी हैं।
अब हर मुस्कान के पीछे छुपा एक राज़ है,
जो चुपचाप कहता – “वो आज भी मेरे पास है।”
ना वर्दी थी, ना कोई हथियार,
फिर भी चले गोलियाँ बेइंतहां बारंबार।
ना कोई झगड़ा, ना कोई गुनाह,
फिर क्यों बही लहू की ये राह?
बस देखा नाम – "हिंदू" लिखा था,
क्या जान की कीमत मज़हब से नापा था?
“अगर अब्दुल होता, तो बच जाता शायद…”
माँ की गोद थी, बच्चे थे पास,
अब बचे हैं बस यादें और राख की सांस।
कश्मीर की वादियों में बहा था लहू,
क्या यही अमन है, यही जुस्तजू?
अब घूमना हो तो बुरखा पहनिए,
अपने ही देश में चेहरा बदलिए।
ना कोई सैनिक, ना सैलानी बचे,
हर दिल से अब बस मातम ही बहे।
कहाँ गई इंसानियत? कहाँ गया प्यार?
अब मज़हब ही बन गया है हथियार।
हर घर में जले दीप, पर उजास नहीं,
जिसे खो दिया वो कभी पास नहीं।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







