जहाँ नदी की लहरों में राग बसते हैं,
प्रेमाञ्चल के घाटों पर भाग्य हँसते हैं।
पेड़ों की छाँवों में चुपचाप मिलन होता,
हर पत्ता यहाँ कोई संदेश कहता है।
पगडंडी की हर धूल स्नेह में डूबी है,
यहाँ मिट्टी भी खुशबू में भीगी-भीगी है।
गोधूलि में गौ-बालक बंसी बजाते हैं,
प्रेम की लहरों पर गीत झरने गाते हैं।
यहाँ हवा भी किसी का नाम पुकारे है,
हर साँझ किसी प्रिय मिलन की तैयारी है।
मन में उमगते हैं भाव बिन कहे,
कोयल के स्वर भी सन्देश सुनाएँ सहे।
हर द्वार पर दीपक मुस्कान से जलते,
रिश्ते यहाँ बिना शर्तों के पलते।
प्रेम की भाषा न कोई लिपि माँगती,
सिर्फ़ दिल से दिल की दूरी को नापती।
ऐसा है मेरा प्रेमाञ्चल – जहाँ हर मोड़ पर मिलन की आशा है,
जहाँ प्रेम, स्वयं ईश्वर बन कर निवासा है।
______अनिल कुमार शर्मा