कापीराइट मुक्तक
वो कहते हैं रोज कि आप कुछ कहते नहीं
हम रोज कहते हैं मगर वो समझते नहीं
अब आप ही बताएं कि हम क्या कहें
हमारी बातों का मतलब वो समझते नहीं
यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है
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