कविता शीर्षक:-अभागों की पहचान।
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ऐसे लोगों के जीवन में
बस लिखा हुआ है रोना।
फेंकें सतत् विश्रवा-सुत
यदि चाहे भरि भरि सोना।।
पैतृक संपत्ति को जो खरचे
खुद करता कुछ काम नहीं।
उसे ही खरचे उसे ही खाएं,
वह बढ़ेगी कैसे? ध्यान नहीं।।
ऐसे कुपूत का जन्म व्यर्थ,
है व्यर्थ धरा पर होना।
ऐसे लोगों के जीवन में
बस लिखा हुआ है रोना।।
जो संपत्ति संची पुरुखों ने,
जीवन निज जीया फकीरों सा।
उस संपत्ति को जो बेच बेच,
करता है ठाट अमीरों सा।।
कोई रोक न पाए ऐसों को,
एक दिन है भिखारी होना।
ऐसे लोगों के जीवन में
लिखा हुआ है रोना।।
जब पिता की अनुमति के वगैर,
उसकी संपत्ति सुत बांट लिए।
उस पिता पर गुज़रेगी?जब,
जीते-जी गरदन काट लिए।।
संपदा छीनकर मात पिता की,
उनको कर दिया खिलौना।
ऐसे लोगों के जीवन में
लिखा हुआ है रोना ।।
माता पिता दुलार किए बस,
संस्कार कुछ दिए नहीं।
फिर नहीं पढ़ाए पुत्रों को,
गलती पर ताड़न किए नहीं।।
हैं ऐसे माता पिता खोजते,
है कहां बैठकर रोना।
ऐसे लोगों के जीवन में,
लिखा हुआ है रोना।।
प्रस्तुतकर्ता कवि:-
पाण्डेय शिवशंकर शास्त्री "निकम्मा"
मंगतपुर,पकरहट,सोनभद्र, उत्तर प्रदेश

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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