मधुर ध्वनि में मंद मंद बहती पवने
गीत कोई गुनगुना सी रही हैं
खेतों में लहराती गेंहू की बालीं
गीतों की लय मैं गा सी रहीं हैं
सूरज ने आकर , किरने बिखेरी
मधुर मधुर मुस्का सी रहिं हैं
धीरे से कलियों ने खोली हें आंखें
तितलियां उनपर मनडरा सि रहीं हैं
किनारे पे वेठे हैं हम भी नदी के
लहरें भी मन को लुभा सि रहिं हैं
पेड़ों की टहनी से पंछी के जोड़े
अंबर तरफ को जा से रहे हैं
चारों तरफ हे रंगों का मेला
प्यासा ह्रदय बहला से रहे हैं |