आकाश में छूती आसमान,
पतंग उड़ती है बेख़बर।
डोर से बंधी है,
मजबूती से।
फिर भी लगती है आज़ाद,
बचपन की यादें ताज़ा करती।
हवा में उड़ती ये पतंग,
दोस्तों के साथ खेलती।
खुशी से भरती मन को संग,
कभी ऊंचाइयों को छूती।
कभी नीचे गिरती धीरे,
फिर भी हौसला नहीं हारती।
उड़ने की चाहत रखती है ऐ!"विख्यात",
डोर कसी हुई।
हाथों में,
फिर भी डर लगता है ।
कहीं कट न जाए,
कहीं पतंग छूट न जाए।
अकेली ही उड़ जाए,
आसमान में।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




