आज उससे मेरी पहली मुलाक़ात थी,
और वो मुझे बिना पलक झपकाए
देखे जा रही थी।
पूछा मैंने उससे-
क्या कोई बात है ?
या फिर दिल में छुपा कोई राज़ है।
देखती क्यों हो ऐसे जैसे,
हम नहीं हमारा कोई ख़्वाब है।
वो भी ना पागल है,
पूछती है मुझसे कि मैं हक़ीक़त हूॅं ना।
अरे, और नहीं तो क्या ?
फिर कोई साया हूॅं मैं।
वो मुस्कुराई फिर,
और पास मेरे आई फिर।
बोली यकीं होता नहीं अपनी तक़दीर पे,
कि आप मिल गए मुझे यूं बिना किसी
तकल्लुफ़ के।
बस इसीलिए चकरा रही हूॅं,
सोच के ये कि कहीं आप ख़्वाब तो नहीं
घबरा रही हूॅं।
कि कहीं आप वाक़य में मेरा वहम तो नहीं,
सोच यही बस परेशां हो रही हूॅं।
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️