किसी तरह हमे ऐसा, कोई मुकाम मिला जाता..
काम खत्म होते ही, फिर कोई काम मिल जाता..।
वो चाहे हमसे ना महफिल में, निगाहें मिलाए भी..
कुछ उदासी चेहरे पे होती, तो पैगाम मिल जाता..।
मयखाने में तो हम कभी, ज़रा भी बेख्याल ना हुए..
इंतेज़ार में थे कि उनकी, आंखों से कोई ज़ाम मिल जाता..।
किताबों से सब हर्फ़, देखिए अब मिटने को हैं..
कुछ कहते तो भी, जुबां पर कलाम मिल जाता..।
कुछ वक्त और मिल जाता, तो ज़िंदगी में बात थी..
वो आ जाते और आख़िरी नज़र का ईनाम मिल जाता..।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




