क्यों रूठे हुए हैं जनाब हमसे
ना रूठुंगीं कभी ये करार करके।
रूठना हीं तो मनाया ही क्यूं
ये शर्माना इठलाना फिर
घबराना हीं क्यूं........
हुई गर खता तो क्षमाप्रार्थी हैं।
आपके दर्शनाअभिलाषी हैं।
एक बार तो मुखड़ा दिखा
दीजिए।
रुख से पर्दा तो ज़रा हटा दीजीए।
हुई गर खता तो क्षमा कीजिए।
अब ऐसे ना मुझसे दगा कीजिए
असर करके दिल में
दर्दे दिल ना दीजिए।
इन खूबसूरत आंखों का हम पे
करम कीजिए।
करते हैं इबादत आपकी ....
थोड़ी सी तो आप भी इनायत कीजिए..
थोड़ी सी तो आप भी इनायत कीजिए....