गम और खुशी का फासला कम हो गया है
अब आंसुओं का दौर भी गुम हो गया है
हमने जहर को ही अक्सीर दवा तब माना है
ज़ख्म का अनवरत सिला जब हो गया है
पीर अपनी है छुपाई हमने तो सबसे मगर
आह जब निकली खुला सब हो गया है
फूल को मालूम नहीं है ज़माने का चलन
जो हंसा ज्यादा बड़ा गुमसुम हो गया है
हकीकत छुप नहीं सकती है दास मुस्कुराने से
आज खुद ही चेहरा तेरा तबस्सुम हो गया है।