जो सामने नहीं भीतर छुपी अँधेरे में।
दिल के करीब इतनी खुश है घेरे में।।
दौड़ती भागती दुनिया में गुमसुम हैं।
रात आई गुजर गई खो गई सवेरे में।।
वहीं चेहरा वहीं आवाज़ें गूँजती मिली।
रहने न देती तन्हा घास-फूस के डेरे में।।
आँखें देखना चाहती उसकी सूरत को।
परछाईं बन गई 'उपदेश' मेरे बसेरे में।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद