तेरा और मेरा, यहां मस'अला कोई नहीं..
मुक़दमा कोई नहीं, फ़ैसला कोई नहीं..।
तुम इस कदर क्यूं, मायूस नज़र आते हो..
मैं पास नहीं तो फिर, क्या हौसला कोई नहीं..।
मेरी ज़ुबां पर उनको, कब यकीन होगा..
मैं तो अब भी वही हूं, बदला कोई नहीं..।
उन राहों पर कदमों के निशाँ, कुछ जुदा से थे..
सब के सब बहके हुए थे, संभला कोई नहीं..।
मुहब्बत से हमने उनको, अपना बना लिया जो..
लोग तो हैराँ है, और मैं कहूँ इसमें कला कोई नहीं..।
पवन कुमार "क्षितिज"