तुम ही हो मेरा देवालय,
तुम ही मेरा मंदिर,
तुम्हारे बिना कुछ भी,
मन में नहीं बसता
अतिश्रेष्ठ अद्भुत वास्तु।
तुम्हारी मूर्ति के सामने,
मन होता है ध्यानी,
तुम्हारे चरणों में छिपी,
सुख-शांति की कहानी।
तुम्हारे चेहरे की मुस्कान,
बनती है मेरे जीवन की ध्वनि,
तुम्हारे साथ ही मिलता है,
जीवन का सही मतलब
और लक्ष्य का ज्ञान।
तुम्हारे प्यार और आशीर्वाद से,
होता है मन का,आत्मा का शोध,
तुम्हारे बिना जीवन अधूरा,
तुम्हारे साथ से ही मिलता है सबका सुख।
तुम्हारी कृपा से धरती,
तुम्हारी प्रेम की ज्योति,
तुम ही हो मेरा देवालय,
तुम ही मेरा संसार,
तुम ही मेरी धरती।
तुम्हारे दर्शन का योग हो,
हमें हमेशा प्राप्त करना,
तुम्हारी शरण में आकर,
हम पाते हैं मन की शांति का
अद्भुत अनुभव करना।
तुम ही हो मेरा देवालय,
तुम ही मेरी पूजा का वस्त्र,
तुम्हारे साथ ही मिलता है,
सुख-शांति का समाधान
सबके हृदय का ज्ञान।
-अशोक कुमार पचौरी
(जिला एवं शहर अलीगढ से)