तुमसे ख़ास कुछ भी नहीं
कुदरत की तुम एक अदभुत रचना हो
हे मुसाफ़िर तुमसे ख़ास कुछ भी नहीं है
जैसे आसमाँ की खूबसूरती चंद्रमा से है
तुम्हारे अपनों की ज़िन्दगी की ख़ूबसूरती सिर्फ़ तुमसे है ।
आज तुम बिखरे मोती ही सही ,हो तो मोती ही
दुख के बादल ही सही ,हैं तो पल भर के ही
तुम्हारी ज़िन्दगी का हर सुख-दुख तुम्हारे अपनों का ही है
यक़ीन रखना कि तुमसे ख़ास कुछ भी नहीं ।
माना आज ज़िन्दगी खेल खेल रही है,पर साथ देने के लिए अपने हैं
अपनों का प्यार,उनका दुलार और दुआएँ कुछ कम तो नहीं है
हे मुसाफ़िर यक़ीन रखना तुमसे ख़ास कुछ भी नहीं है..
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




