यह तेरी कैसी फितरत है,
अंकी इंकी डंकी लाल।
क्या लिखता है,
क्या छिपाता है।
मायाचारी ओ पापाचारी,
तुम हो भ्रष्टाचारी।
मेज कुर्सी तुम खा गए,
वर्दी बेच तुम खा गए।
किताबों के नाम पर,
और न जाने क्या-क्या खा गए।
मुंह में राम बगल में छुरी,
पढ़े-लिखे ज्ञान है अधूरी।
जड़ खोदकर ऐ!" विख्यात",
निकाली जाती है मूली।
आज नहीं तो कल,
एक-एक चढ़ोगे शूली।