ये चाहतों दौर भी अजीब है,
मेरा प्यार जो मेरे करीब है।
इससे अच्छा और क्या होगा,
मेरी मुहब्बत ही मेरी हबीब है।
मुझे देख तुम्हारा मुस्कराना,
रिझाने की अच्छी तरकीब है।
पा कर तुझे खुद को पा लिया,
मुझसे बड़ा कौन खुशनसीब है।
तुझे लिखा मैंने गीत-ग़ज़लों में,
मेरे लेखन की तू ही तहजीब है।
🖋️सुभाष कुमार यादव