मंगल पांडे: क्रांति का बिगुल
डॉ एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात "
बलिया की धरती का वीर जवान,
मंगल पांडे, जिसका था प्रचंड अभिमान।
ईस्ट इंडिया कंपनी की वर्दी धारी,
पर भीतर धधकती ज्वाला थी भारी।
सिपाही था वो, कर्तव्यनिष्ठ और साहसी,
पर अन्याय देख उठी आवाज़ करारी।
नई राइफल का कारतूस वो कारण बना,
जिसने छेड़ी क्रांति की अद्भुत कहानी।
चर्बी लगे कारतूस का सच जब जाना,
धर्म पर आघात वो कैसे सहता?
ब्राह्मण का तेज, क्षत्रिय का शोला,
विद्रोह की आग में जल उठा वो बहता।
उन्नीसवीं सदी का वो मार्च का महीना,
बैरकपुर में गूंजी उसकी ललकार।
"मारो फिरंगी को!" वो गर्जा अकेला,
भयभीत हुई सत्ता, काँपा दरबार।
अधिकारी ह्यूसन पर गोली चलाई,
लेफ्टिनेंट बॉघ भी घायल हुआ।
एक सिपाही ने अकेले ही देखो,
साम्राज्य की नींव को हिला दिया।
साथी सिपाही भी बंधे थे बेड़ियों से,
डर और अनुशासन की जकड़न में।
पर मंगल की ज्वाला तो बढ़ती ही गई,
अकेला लड़ा वो, अपने ही दम में।
गिरफ्तार हुआ वो, अदालत बैठी,
दिखाया उसने निर्भीक अपना तेवर।
फाँसी का फंदा भी झुका न पाया,
उस वीर के माथे का उज्जवल तेवर।
आठ अप्रैल अट्ठारह सौ सत्तावन,
वो तारीख इतिहास में अमर हुई।
मंगल पांडे शहीद हुआ हँसते-हँसते,
क्रांति की पहली मशाल वही जली।
भले ही वो विद्रोह दबा दिया गया,
पर चिंगारी तो दिलों में सुलग गई।
मंगल की उस हुंकार ने ही देखो,
स्वतंत्रता की राह आगे प्रशस्त की।
वो एक सिपाही, पर बन गया प्रतीक,
अन्याय के विरुद्ध उठती आवाज़ का।
मंगल पांडे, नाम रहेगा युगों तक,
भारत माँ के वीर सपूत, गौरव का।
उस बलिदानी को शत शत नमन,
जिसने नींद से जगाया था देश।
मंगल पांडे, तेरी गाथा अमर,
स्वतंत्रता की हर साँस में तेरा संदेश।