अनजानी पहचान
न उन्हें मैं पहचानता हूँ,
न वे मुझे जानते हैं।
हम कभी मिले नहीं,
फिर भी हमारे बीच कुछ है।
उनका नाम मैंने नहीं सुना,
उन्होंने मेरा नाम नहीं जाना।
हमारी बातों में वही गहराई है,
जो आत्माओं की होती है।
दूर रहकर भी नज़दीकी का एहसास,
कभी न देखे जाने के बावजूद,
मन की गहराइयों में बसे रहते हैं।
मिलना और न मिलना,
सब कुछ गौण हो जाता है।
विचारों का संगम होता है,
जो आत्मीयता को जीवित रखता है।
ऐसे मिलन की बात ही कुछ और है,
चेहरे के बिना भी,
दिलों में जगह बना लेते हैं।
बिना नाम की पहचान,
अक्सर सबसे गहरी होती है।
अनजाने रिश्तों में
अनोखी मिठास होती है।
कुछ चेहरे नहीं,
पर आत्मीयता में खरे होते हैं।
जो दिल से दिल मिलते हैं,
वही सबसे प्यारे होते हैं।
कभी-कभी बिना नाम और चेहरे के,
रिश्ते और भी गहरे हो जाते हैं।
सिर्फ विचारों और भावनाओं से,
हम एक-दूसरे को जान जाते हैं।