पक्षियों की गुफ़्तगू
कुछ आवाज़ों से गूँज रहा है
आज मेरा आँगन
सुबह से दोपहर हो गई
थमने का नाम ही नहीं
समझ नहीं आता
शोर कहूँ इसे या कहूँ मनोरंजन
क्योंकि चल रही थी पक्षियों की गुफ़्तगू घर के हर तरफ़ हर कोने से
चिड़ियाँ ,कबूतर ,बुलबुल ,कौवा
चीं चीं,गुटर गूँ,काँ काँ और शान्त बैठी बुलबुल
जाने क्या महफ़िल सज रही थी इनमें आज
उत्साहित हो मैंने पूछ लिया उनसे
क्या खिचड़ी पक रही है एकजुट होकर तुममें आज
सुनकर मन भर आया जब कहा कि क्यों तुम जा रहे हो छोड़ कर हमें
क्यों बनाया रिश्ता हमसे अगर निभाने का इरादा नहीं था
हम साथ जा नहीं सकते
तुम यहाँ अब रुक पाओगे नहीं
अन्न की देनदारी तो उपरवाले की है
पर उस दिल का क्या करें जो तुम्हारे वजूद से जुड़ा है
सुनकर कहा उनसे कि आना जाना प्रकृति का नियम है
नहीं रोक पाए उन्हें भी हम इस जहान से जाते हुए
जो हमारे लिए और हम जिनके लिए बेहद ख़ास हुआ करते थे
इसलिए दिल को अब आदत हो गई है मिलने बिछड़ने की
नहीं रखना गिला शिकवा कोई कि अहम नहीं तुम सब हमारे लिए
जीवन एक सफर है और हमारा सफर अभी रुका नहीं,बाक़ी है चलते रहने के लिए ..
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




