जन्मोत्सव के पर्व पर लिखी गई कविता -स्वयं की खोज ,,,,,,,,,,,
ये कैसे अहसास मिले
जीवन के सुन्दर प्राण मिले
यारा हम तुम फिर से मिले
जैसे जग को आयाम मिले
एक अंश तुम्हारा मैं भी हूं
तुम मेरे ही अदृष्य रूप
मिल- मिल कर जब हम एक हुए
सुन्दर उपवन में बाग खिले
यूं छिपट गए एक दूजे से
जैसे लिपटी एक अमरबेल
मैं मैं न रहा तुमसे मिलकर
तुम हुए लीन जैसे दिनकर
फिर निशा सुहानी ऐसे खिली
चंदा ना था पर चांदनी थी
तुम सोये थे या मैं सोया
कितनी दूरी को मै निकला
भीतर छिप कर तुम हंसते थे
क्या बाहर ढूढा तुम मिल जाते
तुम प्रकट रहे हर एक पल में
मैं अंधा था या बौरा था
कस्तूरी की एक मधुर खोज
क्या जानू तुम मुझमें ही हो
ना समझ कहो या मान अबोध
बस तुम अब हर पल प्रकट रहो
मैं नयन ढांक जब लीन रहूँ
उस पल भी तुम प्रकट रहो
अपने उपवन में सजा सको
एक पुष्प तुम्हारा मैं भी हूं
मैं मैं की भाषा बंद करो
तुम हर पल में ऐसे प्रकटो
मैं तुमसे हूँ तुम मुझसे रहो
बस सार ये मेरा तुमसे है
मैं तुम हूं तुम ही मैं हूं
एक प्यार तुम्हारा मैं भी हूं
तेजप्रकाश पाण्डेय सतना मध्य प्रदेश कॉपीराइट के अंतरगत आती है