ऑपरेशन सिंदूर: एक सशक्त उत्तर
पल भर में लहू से घाटी भीग गई,
छब्बीस चिताएँ जलकर चीख गईं।
पहलगाम की वादी सहम गई थी,
माओं की गोदें वीर शून्य हुईं।
न कोई जश्न, न कोई एलान था,
पर भीतर भारत में तूफ़ान था।
आँखों में आँसू नहीं, अंगार था,
हर साँस में प्रतिशोध की पुकार था।
ना संसद बोली, ना घोषणाएं हुईं,
सीधे सीमाओं पर सुनवाई हुई।
"ऑपरेशन सिंदूर" बन साहस की ज्वाला,
दुश्मन के हर इरादे पर पड़ा ताला।
बहावलपुर — जहाँ घृणा ने जन्म लिया,
अब वहाँ सन्नाटा गूंज उठा।
मुरिदके, गुलपुर, सवाई के ठिकाने,
अब वीरों की गर्जना को पहचानें।
बिलाल कैंप — जो कभी डर का नाम था,
अब वह सिर्फ़ बीते वक्त की बात था।
कोटली, बरनाला, सरजाल, महमूना,
अब शांति की ओर बढ़ता कारवां बना।
जो माँगें उजड़ी थीं, वो अब मान बनीं,
जो आँखें नम थीं, वो सम्मान बनीं।
ये बदला नहीं — था न्याय का स्वर,
भारत के धैर्य का साहसी उत्तर।
यह "ऑपरेशन सिंदूर" केवल मिशन नहीं,
हर शहीद के परिजन का संकल्प था वहीं।
यह माताओं की व्यथा का उत्तर था,
राष्ट्र की आत्मा का निश्चय स्वर था।
हम चुप थे, पर कमजोर नहीं,
हम शांत थे, मगर बेजान नहीं।
जब भारत का संकल्प मुखर होता है,
दुश्मन का घमंड बिखर जाता है।
- अभिषेक मिश्रा