हम कभी कभी वक़्त को, हालात पर छोड़ देते हैं..
बात न बने तो वो अधूरापन, बात पर छोड़ देते हैं..।
हम अपने ख्यालातों से लड़ते लड़ते थक गए जब..
क्या होगा, ये होने वाली मुलाकात पर छोड़ देते हैं..।
ख़्वाबों का चलचित्र, अब कुछ धुंधला नज़र आता है..
उजले नज़ारों की उम्मीद, चांदनी रात पर छोड़ देते हैं..।
ज़माने को मेरे दर्द का ख़्याल न आए जो किसी तरह..
तो आंसुओं को अपने नक्श–ए–जज़्बात पर छोड़ देते हैं..।
वैसे तो सदियों तक उनके इंतेज़ार का जज़्बा रखा हुआ है..
मगर दिल संभल जाए, ये जिम्मा अभी के लम्हात पर छोड़ देते हैं..।
पवन कुमार "क्षितिज"