वफादारी (लॉयल्टी) - सदियों से हम सुनते आरहे हैं वफादारी का दूसरा नाम - स्वान अंग्रजी में डॉग होता है । कुत्ते की वफादारी के बहुत से चर्चे आपने सुने होंगे होसकता है कि आपने इनकी वफादारी को अपनी आँखों से भी देखा हो, इंटरनेट (अंतरजाल) की इस दुनिया में इंस्टाग्राम रील्स, फेसबुक वीडियोज या यूट्यूब शॉर्ट्स या अन्य कहीं - बहुत से वीडियोज में देखा जा सकता है कि ये जानवर अपने मालिक के प्रति कितना वफादार होता है । इसमें खास बात ये होती है कि मालिक और जानवर के बीच में एक अटूट रिस्ता होता है - जिसको दोनों ही अपनी अपनी तरह प्रदर्शित करते हैं या व्यक्त करते हैं।
स्वान अपनी भावनाएं पूंछ हिलाकर, मालिक को चाटकर, उसके ऊपर उछल कूद करके या भौंक कर प्रदर्शित या व्यक्त करते हैं । कभी कभी लेटकर या भागदौड़ करके भी ये इंसान से कुछ कहना चाहते हैं।
जो इनको समझना चाहता है वो आसानी से समझ सकता है कि ये क्या कहना या व्यक्त करना चाहते हैं। इसी तरह डॉग ट्रेनिंग के माध्यम से या स्वतः ही कुछ अभ्यास के माध्यम से आसानी से इनको समझाया जा सकता है कि आप इनसे क्या कहना या करवाना चाहते हैं।
वफादारी के साथ साथ ये जानवर इंसान को उसकी चिंताओं से भी मुक्ति दिलाता है, खासकर कि जब थक कर घर आया हुआ इंसान पाता है की कोई बेसबरी से उसका इंतज़ार कर रहा है, यदि उसको उचित प्रतिक्रिया नहीं दी जाए तो वो भी मायूस सा होकर बैठ जाता है और जानने की कोशिश करता है कि आखिर मालिक उदास या चिंतित क्यों है?
इसके लिए देखा जा सकता है वो बार बार अपना पंजा मालिक के शरीर के पास लेजाकर उससे उसकी उदासी का कारण पूंछना चाहता है या उसको हंसाने या खेलने के लिए मजबूर करने की चेष्टा कर रहा होता है। कभी कभी आपके द्वारा गुस्से में दी गयी प्रतिक्रिया को समझकर भी वह समझ जाता है की अभी कुछ नहीं कहना है और या तो छुप जाता है या थोड़ी देर के लिए आँखों से ओझल होजाता है। जब उसे लगता है कि अभी वक्त सही है वो पुनः प्रयास करता है। और ऐसी भावनाएं सिर्फ एक ही जानवर के अंदर होती हैं ।
जापान के सुप्रशिद्ध डॉग हचिको - एवं उसके मालिक की दोस्ती की कहानी तो आपने सुनी ही होगी, इस कहानी के ऊपर एक उम्दा फिल्म भी बनायीं गयी है जिसको देखने के बाद आप कितने ही पठार दिल क्यों न हों - आँखों से आँशु निकल ही आएंगे । हचिको अपने मालिक को प्रतिदिन स्टेशन तक छोड़ने एवं शाम को आने के वक्त पर लेने जाता था, उसके मालिक जापान की यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे, एक दिन दुर्घटनावस् उसके मालिक की यूनिवर्सिटी में ही मृत्यु होजाती है - तो आने के वक्त पर उनका लौटकर आना अब तो संभव नहीं था, कहा जाता है की हचिको जब तक जीवित रहा तब तक अपने मालिक के जाने के वक्त पर और आने के वक्त पर निस्चित स्थान पर प्रतीक्षा करते करते एक दिन खुद इस दुनिया से चल बसा।
आज भी जापान में उस ट्रेन स्टेशन के बाहर उसकी वफादारी और मालिक के प्रति प्रेम को समर्पित एक मूर्तिस्तम्भ ठीक उसी जगह पर स्थापित किया गया है जहाँ - हचिको अपने मालिक के आने के इंतज़ार में बैठा रहता था।
इसी तरह कई अन्य घटनाएं हैं जिनमे ये जानवर अपने मालिक का इंतज़ार करते करते अपनी जिंदगी बिता देते हैं ।
समझने वाले के लिए ये इंसान से भी बेहतर साथी है, और न समझने वाले के लिए सिर्फ भोंकने और काटने वाला एक जानवर। कई लोगों को इनका रोना पसंद नहीं, कई लोगों को इनका भोंकना उचित नहीं लगता, कई लोगों को इन्हे देखना ही पसंद नहीं है लेकिन इन कई लोगो को छोड़ दिया जाए तो बहुत सारे लोगों को इन्हे पालना, इनके साथ वक्त बिताना, खेलना यह सब बहुत पसंद आता है।
सदियों से इंसान ने वफादारी का दूसरा नाम - स्वान यही संज्ञा दे रखी थी, लेकिन आज कुछ ऐसा हुआ है कि एक कवि ने स्वान या नहीं कि डॉग को नयी संज्ञा दी है - वफादारी का पहला नाम - स्वान और वो कवि हैं अशोक कुमार पचौरी।
आइये उनकी इस कविता "वफादारी का पहला नाम - स्वान" के माध्यम से जानते हैं कि उन्होंने स्वान या नहीं कि डॉग को ये संज्ञा क्यों दी?
कविता - "वफादारी का पहला नाम - स्वान"
एक प्यारा जानवर
जिसको कुत्ता, स्वान
और न जाने किन किन
नामो से आप बुलाते हो
दुहाइयाँ भी देते हो
फिर भी नहीं अपनाते हो
न जाने कितनी जगह
आपकी, मेरी और बहुत सो की
दोपहिया, मोटर के नीचे
आ जाते हैं
क्यूकि हम तुम और बहुत से
देखकर नहीं चलाते हैं
कभी पैर टूटता है तो
बहुत बहुत बिलखाते हैं
कूँ कूँ कूँ कूँ सुनकर भी
हम , तुम और बहुत से
लौटकर देखना तक नहीं चाहते हैं।
बच्चों को सिखलाते हैं
स्वान निद्रा, वको ध्यानम,
सुदामा की मित्रता, कुत्तों की वफ़ादारी
न हम सुदामा बन पाते हैं
न वफ़ादारी निभा पाते हैं।
जब खुद ही नहीं अपना सकते
बच्चों से आस क्यों लगाते हैं।
बात चले पर कह देते हो
कुत्ता पालो पर
गलत फहमी नहीं
पर हर बात में
गलत फहमी पाल लेते हो
कुत्तों को मार भगाते हो
उनका रोना तुम्हे
अच्छा नहीं लगता
कहते हो अपसकुन हुआ
एक बार झांककर देखते
क्या पता भूखा हो
या हो दर्द उठा
मेरा मुझको पता है साथी
उनके दर्द में दर्द है मेरा
बुल्लू , पॉली , डेज़ी जैसे
तीन पालतू हैं मेरे साथी ।
चिंकी, मौटी, चिंकू , पिंकू
और अनगिनत रस्ते वाले
पूंछ हिलाते हैं मुझे देखकर
साथ में मेरा भाई भी
करवाता है देखभाल उनकी ।
आपका और बहुत सो का
अंदाजा में नहीं लगा सकता
उम्मीद यही है आपके भी
होंगे ऐसे बहुत से साथी
प्यार के भूखे प्यार बाँटते
कभी हाथ और पैर चाटते
उछाल कूद कंधे को आते
देखके तुमको पूंछ हिलाते
हाथ फिराने पर लेट हैं जाते
दरवाजे पर पहरा लगाते
इंतज़ार में आँख बिछाते
इतना सब वो कर जाते हैं
थोड़ा हम तुम भी कर लें क्या?
घृणा छोड़कर हाथ बढाकर
हम भी उनको अपना लें क्या?
कवि - अशोक कुमार पचौरी
(जिला एवं शहर अलीगढ से)
आलेख-लिखन्तु ऑफिसियल
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