विश्वासघात
डॉ.एच सी विपिन कुमार जैन विख्यात
अपनों के बीच जब फूट पड़े काली रात,
जब विश्वासघात करे कोई अपना ही घात।
जिन्हें माना था हमने जीवन का आधार,
वही बन जाएं ज़ख्म, तीखी सी तलवार।
धोखे की यह आँधी सब कुछ उड़ा ले जाए,
अपनेपन का हर बंधन टूटता नज़र आए।
किस पर करें यकीन, कौन है यहाँ अपना,
जब अपनों में ही बोया गया हो विष सपना।
मन उदास होता, आँखें भी नम हैं,
अपनों की इस चाल में, खोया सा दम है।
यह कैसा रिश्ता, जहाँ छल ही है साथी,
गद्दारी की आग में जलती हर बाती।
अब राह भी धुंधली है, मंज़िल भी दूर,
अपनों के धोखे ने किया मन मजबूर।
कैसे करें भरोसा अब किसी के भी प्यार पर,
जब अपना ही निकला गद्दार इस संसार पर।