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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

नए भारत के युवा

उठ जाग खड़ा हों नए भारत के युवा तू।
तुझको भारत हैं देख आज पुकार रहा।।

सन् सैंतालीस में हुआ आज़ाद भारत।
तुझको कुछ करने को दे आवाज़ रहा।।

थे वो भी वीर सपूत इस धरती मां के ही।
जिसने इस धरती के खातिर प्राण दिया।।

एक तू कैसा युवा हैं जन्मा सन् 2000 में।
जो इंस्टा पर चैटिंग करने में हों बर्बाद रहा।।

थे वो भी वीर धरती मां के ही बेटे जिसने।
इस भारत को था एक नई पहचान दिया।।

हैं तू भी तो इस धरती मां का ही बेटा।
फिर क्यों इस पब्जी पर दे जान रहा।।

पर्दे में रहने वाली बेटी ने भी दी कुर्बानी थी।
झांसी की रानी सी जन्मी एक महारानी थी।।

हैं आज कल कि ये कैसी नई वीरांगना।
जो इंस्टा पर रिल्स दिन रात बनाती हैं।।

उठ जाग खड़ा हों नए भारत के युवा तू।
तुझको भारत हैं देख आज पुकार रहा।।

उस वक्त कि माताएं कहती अपने सपूत से।
बनकर शेर तू जाकर लड़ना रण भूमि में।

चाहें कुशल तुम लौटो या ना लौटो घर पर।
पीठ दिखा कर न आना छोड़ रणभूमि को।।

शत् शत् नमन करता हूं उन माताओं को।
जिसने ऐसे वीर सपूतों को था जन्म दिया।।

था मंगल पांडेय सा बागी योद्धा जो 1857 में।
अंग्रेज शासकों से कर लिया खुला बगावत था।।

था भगत सिंह सा एक क्रांतिकारी योद्धा।
जो 23 वर्ष में फांसी के फंदों पर लटका।।

थे ऐसे ही कई वीर सपूत बिस्मिल, तात्या टोपे।
सुभाष, आजाद जो बांध कफन सिर पर चलते थे।।

चलो जय हिन्द बोले उन वीर सपूतों को।
जिसने आजादी के खातिर प्राण गवाए थे।।

उठ जाग खड़ा हों नए भारत के युवा तू।
तुझको भारत हैं देख आज पुकार रहा।।

कब तक बना रहेगा यूंही शांत घर पर अपने।
हाथों में थामे 5g फ्री डाटा का उपयोगकर्ता।।

इस इंस्टा, फेसबुक, व्हाट्सएप के चक्कर मे।
क्यूं तुम सब अपनी नई जवानी बर्बाद करता।।

बड़ी संघर्ष से हैं मिली आजादी इस भारत को।
क्यों नहीं इस देश को नई दिशा प्रदान करता।।

कई वर्ष हुए आजादी के इस भारत को।
पर आज भी यह न विकसित देश बना।।

जो आपसी कलह कलेश के कारण।
कई सौ वर्षों पहले था परतंत्र हुआ।।

पंद्रह अगस्त सन् सैंतालीस में इन वीरों ने।
इस भारत मां को पूर्ण स्वतंत्र था करवाया।।

उनके बलिदानों के कारण ही आज युवा।
हैं आज़ादी का 76 वा गणतंत्र मना रहा।।

उठ जाग खड़ा हों नए भारत के युवा तू।
तुझको भारत हैं देख आज पुकार रहा।।


- अभिषेक मिश्रा (बलिया)




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

ABHISHEK MISHRA said

प्रिय साथियों हमें खेद कि एक छोटी सी टाइपिंग मिस्टेक के कारण 78 को 76 लिख दिया गया हैं। चुकीं एक बार कविता प्रकाशीत होने के बाद इसमें कोई सुधार नहीं किया जा सकता इसलिए मैं असमर्थ हूं, इसके लिए मैं आप सभी पाठकों से छमा चाहूंगा।

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