चाह नहीं हमें ऊंची महलों की
हम आदमी सड़क के हीं अच्छें हैं।
क्योंकि दबी पड़ी सिशकियो से
तो हम आज़ाद भले हीं अच्छे हैं।
इन कंक्रीटो के जंगलों में
सिर्फ़ आँख चौंधियाए रौशनी है ।
जिनकी छाओं में ना जाने कितनी
काली स्याह रातें बितती हैं ।
हो हल्ला शोरगुल के बीचों बीच
एक स्तब्ध शांती छनभंगुर है।
जो सुख समृद्धि प्यार वफ़ा को
तोड़ने के लिए आतुर है।
यहां ऊंचे लोग ऊंचे सोसाइटी है
सब अपने में मस्त किसी को किसी की
फिकर हीं कहां है।
कोई कहीं तो कोई किसी से लिपटा
पड़ा है
संस्कारों की धज्जियां उड़ रहीं तो कहीं
उससे भी बुरा हो रहा है।
बाप कहीं और तो मां किसी ओर
तो बाल बच्चे भी कहीं लगें पड़ें हैं।
सिर्फ़ झूठी शानों शौकत में
दिखावे की मस्ती है।
कोई लाख छुपा ले पर पल पल मिट रही
सबकी हस्ती है।
तब तो इससे अच्छी तो हम गरीबों की
बस्ती है।
ऊपर से भाली हीं मैली कुचैली
पर अंदर से स्वच्छ शार्श्वत है।
जीवन के मूल्यों में वृद्धि
यहां संस्कारों की भी इज्ज़त है।
अरे ऊंचे महलों में जिंदगी सस्ती
पर हम गरीबों की झोपड़ में
प्यार दया संस्कार परोपकार
सबका सम्मान है।
ऊंचे ऊंचे महलों से तो
हम गरीबों का जीवन महान है
हम गरीबों का जीवन महान है....

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




