बहा कर आंसू मैं अब दिल को समझाने लगा हूं शाम ढलते ही होकर मायूस मैं अब अपने घर आने लगा हूं
होकर उदास दर्द अपना किसी से कभी कहते नहीं समझ कर चिराग़ को रौशनी अपना दर्द बढ़ाने लगा हूं
तू ना समझ पाया हमें बारीकी से तेरे होने से महक उठा था बाद ए सबा ये कहने पास तेरे मैं आने लगा हूं
हुए हम बेचैन बार बार तुमसे मिलने खातिर हुआ दिल उदास कितना सच कहने पास तेरे मैं आने लगा हूं
वफा की राह में आजमाया भी तुम्हें कई बार और हासिल हुआ कुछ नही सुनाने पास तेरे मैं आने लगा हूं
🙏मेरी स्वरचित गज़ल अंदाज ए बेखुदी🙏