यहां रोज रोज कोन रब को ढूंढता हे
जीसे यकीन नहीं वही ढूंढता हे
रात घनघोर हे सवेरा भी होगा
आधी रात में कौन रोशनी ढूंढता हे
ज़िंदगी हे तो इत्मिनान से चलते रहो
रोज-रोज क्यों नया सफर ढूंढता हे
एक ही तो सड़क हे दोस्तों शहर में
रोज-रोज क्यों नया घर ढूंढता हे
गर जिंदगी को जन्नत बनाना चाहते हो
दुसरो में क्यों अपने को अलग ढूंढता हे
के बी सोपारीवाला