याद आती है अब भी मगर छिपा लेता हूँ।
तुझ पर लिखता बहुत कुछ छपवा देता हूँ।।
शरारत करने को मन करता शायद तेरा भी।
महफ़िल में हँसी आती उसको दबा देता हूँ।।
इन दूरियो का क्या करें अब कम नही होंगी।
फिर भी मुलाकात करने की जुबाँ देता हूँ।।
वक्त वक्त की बात 'उपदेश' रह जाती यादे।
जज़्बात मरते नही तन्हाई में हवा देता हूँ।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद