प्रभु की दीन दया से बचकर, दीन दयालुओं की माला जपकर
श्रृंगार छोड़ अपने व्योम का, मन का श्रृंगार बनकर
भू ज्ञान भुलाकर , धारण करुं ज्ञान सरगम का
मैं साधु भला किस काम का , मेरा पागल मन तो मदमस्त दीवानगी का
पकड़कर मेरी अंगुली का जो तुमने बोझ उठाया ,
अगर थामू आज हम - दम चोलि का तो तुमने हाथ किसी ओर का पकड़ाया,
सवाल पूंछू अपने मन को, बिन पूछें भी कैसे रहूं,
देख!दीवाने अपना साया भी, साया बदलने चला, चला अपने मन का ।।