अब फसाने सुनने सुनाने का वक्त ही नहीं।
नजर से उतर गए अब नजर मिलानी नहीं।।
कभी दुआ माँगी थी तेरी बरक्कत के लिए।
वो हवा में बह गई दिमाग से सियानी नहीं।।
जिस शहर में गई उसका घर बना 'उपदेश'।
कब तक रहने की जरूरत ही पहचानी नहीं।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद