अब बिती बातों में ख़ुद को उलझाना नहीं है
गुज़र चुकी जिस रहगुज़र से वहीं जाना नहीं है
तुम बार-बार पीछे से आवाज़ क्यूंँ देते हो
जो समझा चुकी फिर वही समझाना नहीं है
काश वक्त पर निभाया होता दोस्ती मेरे दोस्त
क्या करूंँ अब तो मुझे हीं निभाना नहीं है
अलम की आदत मुझे कब की हो चुकी है
सुनो ऐ दिल नए बवंडर से घबराना नहीं है