झूठे सपने दिखाना नहीं चाहता,
हाँ में हाँ मैं मिलाना नहीं चाहता l
हमने कैसे बिताई है ये जिन्दगी,
सबको सब कुछ बताना नहीं चाहता l
हम हैं जैसे तुम्हारे सनम सामने,
बेवजह कुछ छुपाना नहीं चाहता l
हम तो करवट बदलने रहे रात भर,
क्या वज़ह थी, बताना नहीं चाहता l
हाशिये पर पड़े थे ना रहबर कोई,
जोशे जुनूँ को बताना नहीं चाहता l
ना चंदा ना तारे ये फलक ना जमीं,
जिससे रोशन हूं कहना नहीं चाहता l
ना तो तुम ही रहे ना तो हम ही रहे,
ऐसे विष को मैं चखना नहीं चाहता l
बंजर में खिला "विजय" वो फूल है,
ऐसे वैसे बिखरना नहीं चाहता l
विजय प्रकाश श्रीवास्तव (c)