तू तू में गुजर जाता है वक्त,
मैं मैं में ढलती है जिदंगी,
थोड़ा सिहरन चाहिए थकान बहुत है।
और जीने के लिए हर खुशी,
पल भर के बिछड़न में,
कितनी रुलाती है जिंदगी,
शाम होते हुए याद आते हैं वे,
जिसे जाना था बहुत दूर,
चुराके हँसी के नूर।
वे मेरे से दुखी हैं,
अपने ही भीड़ में गुम हैं।
जिसने संभाल कर रखे दिल मेरा,
हर मुश्किल से लड़ते रहे।
-मनोज कुमार यकता