घन घटा धन हटा नहीं तो तन से देखो मन हटा,
जीवन छटा चिंता हटा नहीं तो पूरे जीवन को आधा घटा,
नभ हटा जल हटा थल हटा हो सके तो अनल-अनिल हटा देखिए ये जीव छटा,
रूप हटा यौवन हटा नजरें हटा हो सके तो दिल से यह धड़कनें हटा,
अब बता यह मस्तिष्क किस किस में बटां,
मूरत हटा सूरत हटा भजन गाते यह भक्त हटा,
वो कौन है जो तुमसे अलग छटा,
फूल हटा कली हटा फल हटा शाखा हटा हो सके तो पूरा वृक्ष हटा,
जड़ भी ना हो तो एक बीज से कैसे पूरा जीवन ही फटा,
आकर्षण घटा बाजार घटा स्वार्थ हटा हर वस्तु से लगाव हटा,
अनुभव को बना अपनी घटा,
हर बूंद में अपना जीवन बटा,
बाहर के चेहरे हटा प्रकाश से सब कुछ घटा,
पर प्रकाश किससे घटा, वह अधिकारी किसकी है छटा,
इंसानियत है तो इंसान घटा,
प्रेम करेगा धरती से अपने घमंड के पैर हटा,
निर्मल बहने दे यह दिलकश छटा,
मान हटा अपमान हटा हो सके तो सम्मान हटा,
नई उम्मीद नई विश्वास की किरण घटा,
हर तरफ फैलती रहे यह ज्ञान की जटा,
सावन हटा बादल हटा मोर नाचे तो पंख पसारे हरियाली छटा,
सच हटा झूठ हटा हो सके तो वक्र जो हो उसकी बातें हटा,
सादगी से कह सके यह वाणी की घटा,
जो छुप रही है अद्वैत घटा,
जो तथ्य है वह वास्तविक है पर जो है नहीं वो भी घटा,
सिमट रही है ये विचार की छटा,
अब देखो यह दर्शन की छटा।।