मन के गीतों की रुनझुन,
एक तारे की बस ये धुन l
मन मंदिर में दिये की लौ
हो कोई इक पाक सगुन l
मेघ बड़े सज धज के आए,
शहर से आए जैसे पाहुन l
उसके छुअन का है जादू,
धूप की जैसे हो गुनगुन l
एक दूजे में खो जायें हम
जैसे हों राधा संग किसुन l
मन में बसे सतरंगी सपने,
जैसे गुलाल की हो फागुन l
आंख में जब नेह बसा हो,
नहीं दिखे है कोई औगुन l
मन जब मन से मिल जाते,
प्यार यूँ हो जाता है दुगुन l
नहीं चले ईमान का सिक्का,
दुनियादारी में सब हैं निपुन l
(C)