रक्षा बंधन केवल अपनी हीं
बहनों तक सीमित नहीं होना चाहिए
बल्कि रक्षा बंधन के दिन सभी को
सभी की बहनों का सम्मान प्यार दुलार
करेंगें ये सुनिश्चित होनी चाहिए।
सभी बहनों की रक्षा का प्रण लेना चाहिए।
आज़काल रक्षा बंधन भी फैशन बैन गया है
सारे राह बहनों के साथ ना जाने क्या क्या हो रहा है और तो और......
चौक चौराहों नुक्कड़ बाजारों में सारे आम
बहनों के साथ छेड़ छाड़ होते देख लोग
मुंह मोड़ लेते हैं।
केवल मोबाइल से वीडियो बनाना हीं अपना फ़र्ज़ समझते हैं।
दूसरों की बहनों पर फब्तियां
दूसरों की बहनों पर बुरी नज़रें
परेशान करना
उनका रास्ता रोकना
उनकी जिंदगी तबाह करना
ये अभी भी ज़ारी है
और झूठ मूठ के रक्षा बंधन की तैयारी है।
अब पर्वों का महत्व भी नहीं है
बस बाजारों की इन पर नजर पड़ रही है।
बाजारवादी परंपरा में सारी सांस्कृतिक
मूल्यों का ह्रास हो रहा है।
पर्व त्यौहार बस एक इवेंट सा लग रहा है।
ना रिश्तों की मजबूती
केवल खानापूर्ति है।
लोगों की मांग और बाजार की आपूर्ति है।
बाकि सारे गीत संगीत बेमानी लगतें हैं
आजकल के भाई दूसरों की क्या कहें
अपने बहन को भी नहीं छोड़ते हैं।
रखी के पवित्र धागों को भी बदनाम
कर डालते हैं।
और झूठ मूठ के दिखावे के लिए रक्षा बंधन मनातें हैं।
अरे मूर्खों पहले अपना नजरिया बदलो
सभी बहनों का सम्मान करना सीखो
तब जाकर इस पवित्र पावन पर्व को मानोआ।
वरना क्या मतलब है इनका
बस वक्त की बरबादी है।
बहनों नारियों माताओं के देश में
पल पल लूट रहीं आधी आबादी है...
बस दिखावे की रक्षा बंधन की तैयारी है..
बस दिखावे की रक्षा बंधन की तैयारी है...

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




