हँसते-हँसते दे दी जान,
व्यक्तित्व उनका निराला था,
स्वतंत्र भारत भूमि का स्वप्न,
अपने मन में पाला था।
जब चैन से सो रहे थे,
लोग अपने आवास में,
हँस कर झेल रहे थे,
वो पीड़ा कारावास में।
भूखे रहे वो सैकड़ों दिन जेलों में,
गले से उनके उतरता नहीं निवाला था।
हँसते-हँसते दे दी जान,
व्यक्तित्व उनका निराला था।
धधक उठी एक चिंगारी,
प्राणों की आहुति दी महाज्वाला में,
शोषण, अत्याचार देख गोरों का,
जल रहे थे अन्तर्ज्वाला में,
पीड़ा होती उन्हें,
देख भारत की गुलामी,
आजाद भारत का सपना,
अपनी आँखों में पाला था।
हँसते-हँसते दे दी जान,
व्यक्तित्व उनका निराला था।
🖊️सुभाष कुमार यादव

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




