कैसे समझाऊंँ मेरे ग़ज़ल में अब वो ताप नहीं
दर्द है मुझे भी क्यूं अब सुर लय वो थाप नहीं
सुर छेड़ते हीं कभी रंग जम जाती थी महफ़िल में
घुटन होती है मेरी आवाज़ में अब वो आलाप नहीं
जाने कहांँ चले गये महफ़िल के वो सारे लोग
लगता है अब उनसे कभी अपना मिलाप नहीं
समझा लिया है मैंने दिल को अब टूटना नहीं है
चाहे कुछ भी हो जाए करना अब विलाप नहीं