"ग़ज़ल"
तुम पे फ़िदा मिरी आशिक़ी थी मैं न था!
मिरे दिल की वो दीवानगी थी मैं न था!!
जब थी मुझे तुम्हारी ज़रूरत तुम न थी!
जब तुम सदा मुझे दे रही थी मैं न था!!
भूखी प्यासी जाड़े में गर्म कपड़ों के बिना!
वो बेचारगी में ज़िंदगी थी मैं न था!!
मैं ने कहाॅं पी थी मय पी चुकी थी मुझ को!
मुझ से जुदा मिरी बे-ख़ुदी थी मैं न था!!
साहिल से दरिया को हसरत से देखती!
कई जन्मों की वो तिश्नगी थी मैं न था!!
मैं मौत की तलाश में निकला था शायद!
मिरी ज़िंदगी जब रो रही थी मैं न था!!
जिस ने हर इक शख़्स को दीवाना कर दिया!
इस 'परवेज़' की वो शायरी थी मैं न था!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद