हर किसी से हम तो बड़े तपाक से मिलते हैं
पर खुद से कभी कहाँ इत्तेफाक से मिलते हैं
एक ही मिट्टी हवा पानी और खाद भी एक
चमन में अलग अलग कई गुलाब खिलते हैं
जिसको मयस्सर नहीं दो वक्त की रोटी भी
चारों पहर हाथ में अब जामे शराब मिलते हैं
कोसते हैं हरवक्त जो बस अपनी गरीबी को
मालूम हो अमीरों के भी दिन खराब मिलते हैं
यह दास सिलसिला तो जीवन का अनंत पर
जीने के लिए हमको नए रोज ख्वाब मिलते हैंl