फ़ायदा कुछ नहीं वज़ाहत का ,
आप अपनी नज़र से देखेंगे ।
हर मसाइल का हल निकलता है ,
हममें जब मैं नहीं रहता ।
आज़ाद फ़िज़ाओं में
मैं उड़ जाऊंगी एक दिन,
ये जिस्म फ़क्त मेरा
मेरी रूह का कफ़स है ।
हमको पहचान अपनी प्यारी थी ,
हम बदलते तो हम नहीं रहते ।
इसका हिस्सा कभी नहीं बनना,
भीड़ पहचान छीन लेती है ।
टूटे उम्मीद तो शिकायत कैसी ,
अपनी मर्ज़ी के मुताबिक सब है ।
इसमें किसको शरीक़ हम करते ।
अपनी क़िस्मत के दर्द अपने थे ।।
जा के बैठेगी अब कहां तितली ,
फूल है और मेरा चेहरा है ।
ख़ुद से हमको है बस यही कहना ,
ख़ुद को खोकर किसी के क्या होना ।
कुछ निशां फिर भी रह गये बाक़ी ,
हमने लिख कर तुम्हें मिटाया है ।
झांकने का जो शौक़ रखते हैं ,
अपने अंदर भी झांक सकते हैं ।
साथ हमदर्दियां हो कितनी भी ,
मेरी तकलीफ़ बस मेरी होगी ।
ये सफ़र निकला चंद सां सांसों का,
ज़िंदगी कितनी मुख़्तसर निकली ।
सारी दुनिया समझ नहीं सकती ,
हमने ख़ुद को अगर नहीं समझा ।
दूर होकर भी मुहब्बत का असर रक्खा है ,
हमने ख़ामोश दुआओं का सफ़र रक्खा है ।
उसको लगता था टूट जाएगा ,
कोई वादा किया नहीं हमने ।
मेरी सांसों की तुम ज़मानत हो ,
भूल कर तुमको , जी नहीं सकते ।
इससे ज़्यादा मुझे नहीं कहना ,
तुम मेरे बाद भी मेरे रहना ।
हैं तुझी से शुरू , तुझी पर ख़त्म ,
मेरे अल्फ़ाज़ अब नहीं मेरे ।
ख़ुद को मुर्दा शुमार मत करना ,
लोग डरते हैं ज़िंदा लोगों से ।
खेल ही खेल में यहां अक्सर ,
लोग दिल से भी खेल जाते हैं ।
ज़िंदगी तुझसे इतना तो निभा ही देगे ,
अपने होने की हम खुद ही गवाही देंगे ।
----डाॅ फौज़िया नसीम शाद