जब नजर से सलाम करते हैं
काम सबका तमाम करते हैं।।
ये न पूछो हम तुम्हारे बिन
कैसे सुबह से शाम करते हैं।।
जिनपे इल्जाम खुद सताने का
वो शिकायत भी आम करते हैं।।
गरीबी में पले बढे हैं फिर भी
खूब रोशन वो नाम करते हैं।।
वक्त का क्या कट ही जाएगा
आप क्यूं जी खराब करते हैं।।
हक की मांग गर खिलाफत है
हम सदा यह गुनाह करते हैं ।।
दास जिन्हे हक नहीं उठाने का
दाम लेकर वे सवाल करते हैं।।