ख्वाहिशो के पीछे भागती है जिन्दगी।
अंधी है इसी लिए ठगी गई है जिन्दगी।।
जाने कैसे विस्तर पर आँख लग जाती।
ख्वाब आते बेचैन कर देती है जिन्दगी।।
नफरती गर्म अंगारे फैले हुए हर तरफ।
बच नही पाती दग जाती है जिन्दगी।।
मुश्किलों की बानगी स्वाद बिगाड़ देती।
खुशियो की चाहत में फंसी है जिन्दगी।।
अनचाही मुराद क्यों मिलती 'उपदेश'।
लग रहा जैसे दुखों की सगी है जिन्दगी।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद