किसी की सादगी को लाचारी मत समझना,
उसे हल्का देख खुद को भारी मत समझना।
बनावटीपन दिखता है चेहरे के हाव-भाव से,
उसके सादापन को, अदाकारी मत समझना।
हाथ जोड़ कर खड़ा है, ये शालीनता उसकी,
उसका व्यवहार देख, दरबारी मत समझना।
वो खुशियाँ खरीदता है अपना गम बेच कर,
उसका लेन-देन देख व्यापारी मत समझना।
मजबूरियाँ खींच लाई हैं उसे भरे बाज़ार में,
ताश का खेल दिखाता जुआरी मत समझना।
🖊️सुभाष कुमार यादव